साल 2020 में दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के पीछे बड़ी साजिश से जुड़े यूएपीए मामले में एक आरोपी को हाई कोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि हिंसा सार्वजनिक प्रदर्शन विरोध करने के संवैधानिक अधिकार से परे है. इसे कानून के तहत दंडनीय अपराध बनाता है. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि आरोपी सलीम मलिक ने गहरी साजिश रची थी.
कोर्ट ने कहा कि आरोपी सलीम मलिक ने सद्भाव को नष्ट करने के लिए धर्म के नाम पर स्थानीय लोगों को उकसाया था. उसके साथ इस हिंसा के साजिशकर्ताओं का ये उद्देश्य था कि विरोध प्रदर्शन को चक्का जाम तक बढ़ाया जाए. उसके बाद एकत्रित भीड़ को हिंसा में शामिल किया जाए. अपीलकर्ता के साथ अन्य आरोपियों ने साल 2020 में 20, 21, 22 और 23 फरवरी को आयोजित बैठकों में हिस्सा लिया था. इसमें हिंसा फैलाने पर चर्चा हुई थी.
न्यायमूर्ति मनोज जैन ने कहा, " इन बैठकों में पैसे एकत्रित करने, हथियारों की व्यवस्था करने, लोगों की हत्या के लिए पेट्रोल बम खरीदने, संपत्ति में आग लगाने और इलाके में लगे सीसीटीवी को नष्ट करने को लेकर भी बातचीत हुई थी. ऐसा किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में स्वीकार्य नहीं है. इन साजिशकर्ताओं ने दिसंबर, 2019 में हुए दंगों से सबक सीखा था. उनका उद्देश्य विरोध प्रदर्शन को चक्का तक बढ़ाना था. फिर भीड़ को उकसाकर हिंसा करना था.''
कोर्ट ने कहा कि आरोपी के खिलाफ "प्रथम दृष्टया सही" मामला बनता है. इसके कारण धारा 43-डी (5) के तहत जमानत पर रोक लगा दी गई है. सलीम मलिक, शारजील इमाम, यूनाइटेड अगेंस्ट हेट के संस्थापक खालिद सैफी और उमर खालिद सहित कई अन्य लोगों पर आतंकवाद विरोधी कानून गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था. उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए दंगों में 53 लोग मारे गए थे. 700 से अधिक लोग घायल हुए थे. उस वक्त सीएए और एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई थी.
अपीलकर्ता सलीम मलिक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने दलील दी कि उनके खिलाफ यूएपीए के तहत कोई मामला नहीं बनता है. यह तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता केवल एक रसोइया था. उसे मंच के पीछे रसोई की देखरेख करने की जिम्मेदारी दी गई थी. वह प्रदर्शनकारियों को उकसाने में शामिल नहीं था. हालांकि, विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने आरोप लगाया कि चांद बाग के निवासी अपीलकर्ता ने दंगों में सक्रिय रूप से भाग लिया था.
बताते चलें कि एक महीने पहले दिल्ली दंगों के पीछे बड़ी साजिश के मामले में आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन की नियमित जमानत याचिका भी खारिज कर दी गई थी. कोर्ट ने कहा था कि उनके खिलाफ आरोप "प्रथम दृष्टया सही" थे. अपने सामने मौजूद सबूतों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने यह भी देखा कि आरोपी ताहिर हुसैन ने दंगों के लिए पैसे दिए थे. इतना ही नहीं उनकी सहभागिता और उकसाने की की वजह से दंगे भड़क उठे थे.
कोर्ट ने कहा था कि यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगा कि ताहिर हुसैन के खिलाफ लगाए गए आरोप आतंकवादी कृत्य नहीं थे, इसलिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम (यूएपीए) अधिनियम के कड़े प्रावधान लागू नहीं होंगे. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश समीर बाजपेयी ने कहा, "सरकारी अभियोजक को सुनने और अंतिम रिपोर्ट या केस डायरी को देखने के बाद, अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि आरोप (हुसैन के खिलाफ) प्रथम दृष्टया सच हैं."
विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट के 2023 के फैसले का हवाला दिया था. इसके अनुसार, यूएपीए प्रावधान के तहत जमानत खारिज करना एक नियम है और जमानत देना एक अपवाद है. कोर्ट ने कहा था, "यूएपीए की धारा 15 के तहत दी गई आतंकवादी कृत्य की परिभाषा के अंतर्गत आरोपी की हरकतें आ सकती हैं." इस मामले में तीन सह आरोपियों देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल को दिल्ली हाई कोर्ट से जमानत मिल चुकी है.
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